विदेशी श्रद्धालु कुंभ मेला देखने बड़ी संख्या में आते है और कुछ विदेशी श्रद्धालु को तो इतना रास आता की वो यही रह के संत बन जाते है। अखाड़ों के अलावा भी कई आध्यात्मिक गुरुओं के शिविरों में विदेशी संत रह रहे हैं। मसलन सच्चा बाबा आश्रम के शिविर में तमाम संत फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड, ऑस्ट्रिया, स्लोवाकिया जैसे यूरोपीय देशों के अलावा दक्षिण अमरीकी देशों से भी हैं।
सच्चा बाबा आश्रम में पर्यटक के तौर पर कुंभ मेला देखने आए ऑस्ट्रेलिया के एक व्यक्ति ने अपने आने का उद्देश्य कुछ इस तरह बयां किया, “मैं तो सिर्फ़ ये देखने आया हूं कि आख़िर यहां ऐसा क्या है कि करोड़ों लोग सिर्फ़ कुंभ मेले में नदी में नहाने के लिए चले आते हैं। ऐसा अद्भुत दृश्य मैंने पहले कभी नहीं देखा। यहां आकर पता चला कि अध्यात्म क्या चीज़ है। मुझे आए हुए एक हफ़्ता हो गया है, हिन्दी नहीं समझता हूं, लेकिन महात्माओं के प्रवचन सुनने जाता हूं। साथ में स्वामी जी रहते हैं जो हमें अंग्रेज़ी में सब कुछ समझा देते हैं।”
“कुंभ मेले में देश भर से साधु-संत और महंत आते हैं जिनके अनुयायी विदेशों में फैले हैं। विदेशी लोग यहां आकर दीक्षा भी लेते हैं और संतों के शिष्य बन जाते हैं तो स्वाभाविक है कि यहां आएंगे ही। विदेशी संत यहां के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं तो विदेशी पर्यटकों के लिए मेले में आए भारतीय श्रद्धालु।”

इसके साथ ही वह कहती हैं कि ‘भारत में अगर आप एक ही भाषा नहीं बोलो तो भी आप एक-दूसरे को समझ सकते हैं। हमारा दिन सूर्य नमस्कार से शुरू होता है, उसके बाद मेडीटेशन। यह करने के बाद हम आश्रम के कुछ काम जैसे कि पेंटिग वगैरह करते हैं और उसके बाद फिर से जप करते हैं। यह सरल जीवन किसी भी आकर्षण से ज्यादा अच्छा है जिसके कारण कुछ लोग खुशी से भारत में बस सकते हैं।’ ‘मैं यहां आती-जाती रहती हूं। मैं यहां रुकना तो चाहती हूं लेकिन मुझे रूस में रह रहे मेरे माता-पिता की देखभाल करनी होती है।’ इस एक महीने के सिंहस्थ में इन शिष्यों का उत्साह साफ झलक रहा है। अलेक्जेंड्रिया का कहना है कि ‘ मैं इलाहाबाद के कुंभ में जा पाई थी लेकिन सिंहस्थ में पूरे उत्साह से शामिल होंगी।’
रैंबो कम्युनिटी की ही एक अन्य सदस्य और जर्मनी के म्यूनिख़ शहर की रहने वाली एनी संन्यासियों के वेश में रहती हैं। वो बताती हैं, “मैं क़रीब तीन साल से भारत में आती-जाती रहती हूं और अपने गुरु के आश्रम में ही रहती हूं। शांति की खोज में यहां तक आ गई और लगता है कि इसी सनातन धर्म में ये सब मिल सकता है, कहीं और नहीं।”
एनी अभी हिन्दी ठीक से तो नहीं बोल पातीं लेकिन उनका कहना है कि वो सीख रही हैं और जल्दी ही अच्छे से हिन्दी बोलने में सक्षम हो जाएंगी। कुंभ मेले में वो पहली बार आई हैं लेकिन इंटरनेट पर इसके बारे में उन्होंने काफ़ी कुछ पढ़ा है और यहां आकर उन्हें ‘दिव्य’ अनुभूति हो रही है।
कुंभ में आने वाले विदेशी श्रद्धालु और संत नए साल से ही आने लगे थे। बहुत से श्रद्धालु तो पर्यटक के तौर पर आए हैं और लक्ज़री कॉटेज में रुके हैं लेकिन जहां तक विदेशी संतों का सवाल है तो किसी ने किसी आश्रम, महंत और अखाड़ों से जुड़े हैं और उन्हीं के संपर्क में यहा हैं। अखाड़ों से जुड़े संत शाही स्नान में भी शामिल होते हैं और अखाड़ों की पेशवाई का भी हिस्सा बनते हैं।